क्या कोई बैंक आपका कर्ज माफ कर सकता है?

हाँ, कुछ स्थितियों में बैंक आपकी देनदारी का कुछ हिस्सा या पूरा कर्ज माफ कर सकते हैं पर यह खुद--खुद नहीं होता यह निर्णय बैंक की internal policy, RBI के निर्देशों, सरकारी निर्देशों और कानूनी/नीतिगत स्थितियों पर निर्भर करता है 

नीचे आसान भाषा में हर पहलू, अंतर और व्यवहारिक सलाह दी गई है ताकि आप समझ सकें कि माफ का असल मतलब क्या होता है और किसे किस तरह मदद मिल सकती है

क्या कोई बैंक आपका कर्ज माफ कर सकता है?
क्या कोई बैंक आपका कर्ज माफ कर सकता है?

सबसे पहले: माफ करना (waiver) तीन अलग चीज़ें हो सकती हैं

जब लोग कहते हैं बैंक ने मेरा कर्ज माफ कर दिया तो आमतौर पर तीन अलग-अलग व्यवस्थाएँ होती हैं इन्हें समझना जरूरी है:

  1. Government loan-waiver (सरकारी माफी): सरकार (केंद्र या राज्य) कभी-कभी खास श्रेणी - जैसे छोटे किसान के लिए कर्ज माफ करने की घोषणा करती है यह बैंक को compensate करने के लिये बजटीय प्रावधान के साथ होता है यह सरकारी कार्रवाई है, बैंक-दौर निर्णय नहीं हालिया वर्षों में कुछ राज्यों ने किसान-कर्ज माफी के बड़े-बड़े पैकेज घोषित किये हैं 
  2. One-Time Settlement (OTS) / Compromise settlement: बैंक और Borrower के बीच बातचीत से होता है। बैंक कुछ हिस्सा माफ कर के शेष को एकमुश्त या किस्तों में स्वीकार कर सकता है OTS बैंक की commercial नीति के अनुसार होता है। RBI ने OTS/compromise के ढाँचे और technical write-off पर दिशानिर्देश दिए हैं 
  3. Write-off / Technical write-off (लेखा समायोजन): बैंक कभी-कभी accounting reasons से loan को write-off कर देते हैं। पर इसका मतलब यह नहीं कि ऋणी पर अब दायित्व खत्म हो गया Write-off एक लेखांकन कार्य है। बकाया रकम पर बैंक फिर भी recovery कर सकता है RBI ने write-off के नियम और reporting दिशानिर्देश दिए हैं 

सरल बात: Write-off = waiverwrite-off आमतौर पर बैंक का internal accounting step है। Waiver यानी सचमुच का मुआवजा/छूट तब होती है जब बैंक या सरकार ने legally और लिखित रूप से शेष राशि को छोड़ दिया हो 

बैंक कब OTS या partial waiver देते हैं - व्यवहारिक वजहें

बैंकों के लिए OTS/compromise एक commercial निर्णय है बैंक अक्सर तब OTS पर विचार करते हैं जब:

  • दीर्घकालीन recovery असंभव या महंगा हो (legal cases, asset बिकना)
  • borrower के पास कुछ limited payment capacity हो और lump-sum/instalment में partial amount मिल सकता हो
  • बैंक को पुरानी NPA को clean करने और provisioning कम करने की ज़रूरत हो। OTS से बैंक समय और खर्च बचा सकता है 

RBI ने compromise settlement के लिए framework दिया है और बैंक-level पर nondiscriminatory OTS policy रखने की सलाह दी है पर अंतिम निर्णय बैंक की commercial judgement पर निर्भर रहता है

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क्या कोर्ट बैंक से कह सकता है कि वह आपका कर्ज माफ करे?

नहीं, सामान्यतः कोर्ट बैंक को यह बाध्य नहीं कर सकता कि वह OTS दे दे हालिया हाई-कोर्ट के आदेश भी यह स्पष्ट करते हैं कि न्यायालय बैंक की internal commercial policy को बदलने का आदेश नहीं दे सकता यानी बैंक-की मर्जी जरूरी होती है आप अदालत के जरिए बैंक से OTS मज़बूर नहीं करवा सकते 

सरकारी कर्ज-माफी (loan waiver) - यह कैसे काम करता है?

सरकारें (केंद्रीय या राज्य) कभी-कभी targeted loan-waivers की घोषणा करती हैं- खासकर किसान कर्ज पर सरकार बैंक को वह राशि reimburse करती है या कुछ पैमानों पर राहत देती है यह राजनीतिक और वित्तीय निर्णय होता है निजी व्यक्ति सीधे बैंक से सरकारी माफी नहीं माँग सकता सरकार जो वर्ग तय करती है वही लाभ पाते हैं 

Write-off करने के बाद क्या borrower पर दायित्व खत्म हो जाता है?

नहीं, Technical write-off बैंक के किताबों में asset को अलग तरह दिखाने का तरीका है अधिकांश मामलों में borrower पर दायित्व बना रहता है और बैंक recovery कार्रवाई जारी रख सकती है (dunning, legal action, auction of collateral)इसलिए write-off को waiver मत समझिए 

अगर आपको OTS/waiver चाहिए तो क्या करें - व्यवहारिक कदम (step-by-step)

  • अपना रिकॉर्ड साफ़ रखें: Loan statements, Default amount, Communication सब संभाल कर रखें
  • बैंक से लिखित बात करें: OTS की formal request दें, Bank की OTS policy के अनुसार negotiate करें बड़े बैंक-ब्रांच के recovery/compromise cell से मिलें 
  • अगर बैंक ने settlement माना तो लिखित NOC लें: भुगतान के तुरंत बाद NOC/settlement letter और CRB update का प्रमाण लें 
  • कानूनी सलाह लें: अगर मामला जटिल हो या bank unreasonable demand कर रहा हो तो consumer court / legal counsel से सलाह लें
  • सरकारी योजनाओं पर नज़र रखें: केवल वही वर्ग जो सरकारी waiver के दायर में आता है। उसके लिये ही राज्य/केंद्र कार्रवाई कर सकते हैं 

सावधानियाँ - किन बातों का ध्यान रखें

  • बैंक से मिले किसी मौखिक वादे पर भरोसा करें। सब कुछ लिखित लें
  • अगर OTS पर सहमति हो जाए भी तो CRB (CIBIL) पर settled/write-off का असर पड़ सकता है। भविष्य में क्रेडिट हासिल करना मुश्किल हो सकता है 
  • Write-off का मतलब legal liability खत्म नहीं। बैंक फिर भी recovery कर सकता है 

FAQs (सरल और सीधे उत्तर) 

Q: क्या बैंक हमेशा मेरा कर्ज माफ कर सकता है?
नहीं, बैंक अपने तरीके से ही तभी कर्ज माफ (waive) या घटाते हैं जब वे OTS/compromise पर सहमत हों या सरकार ने किसी वर्ग के लिए आधिकारिक माफी घोषित की हो बैंक का लिखित सहमति और नीति जरूरी होती है
 सिर्फ़ मांगने से माफ़ी नहीं मिलती

Q: write-off और waiver में क्या फर्क है?
बड़ा फर्क है, write-off एक लेखांकन प्रक्रिया है जहाँ बैंक अपने खातों में बकाया को अलग दिखाता है
 पर इससे आपकी कर्ज़ी जिम्मेदारी खत्म नहीं होती और बैंक recovery कर सकता है Waiver मतलब बैंक या सरकार ने सचमुच remaining debt को छोड़ दिया हो, तभी आपकी liability मिटती है

Q: अगर बैंक ने OTS देकर हिस्सा माफ कर दिया तो मुझे क्या करना चाहिए?
OTS स्वीकार होने पर तुरंत लिखित (written) settlement letter / NOC लें, payment के बाद CRB (CIBIL) अपडेट करवाने का प्रमाण माँगें और अपने records (receipts, NOC) संभाल कर रखें
 ताकि आगे किसी विवाद या recovery के खिलाफ आपका सबूत मौजूद रहे

निष्कर्ष (Conclusion)

बैंक अपना पूरा कर्ज माफ कर सकते हैं : पर यह ज़्यादातर दो रास्तों से होता है - (a) सरकार-द्वारा घोषित targeted loan-waiver (किसानों जैसी श्रेणियों के लिये), या (b) बैंक-स्तरीय negotiation (OTS/compromise) जहाँ बैंक कुछ हिस्सा माफ कर देता है 

Write-off अलग चीज है : वह अकाउंटिंग कदम है; write-off होने पर भी बैंक recovery कर सकता है 

कोर्ट बैंक को OTS देने के लिये बाध्य नहीं कर सकता : अंतिम निर्णय बैंक का management लेता है 

Resources (आधिकारिक और भरोसेमंद पढ़ने-लिए)

  • RBI : One-Time Settlement guidelines (Master Circular / OTS advice). (Reserve Bank of India)
  • Examples of bank OTS/compromise policy (State/Bank PDFs and SBI policy references). (tiic.org)
  • Recent state government farmer loan waivers (news summaries). (INPA)


Disclaimer : यह लेख सामान्य जानकारी के लिए है और कानूनी/वित्तीय सलाह नहीं है OTS, write-off और सरकारी waiver की शर्तें समय-समय पर बदल सकती हैं किसी विशेष मामले में कृपया अपने बैंक, RBI की आधिकारिक वेबसाइट या प्रमाणित कानूनी/वित्तीय सलाहकार से परामर्श लें


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Rajwinder Singh

मैं राजविंदर सिंह, LoanKaGyan.online का लेखक हूँ। यहाँ मैं personal finance और loans पर आसान हिंदी में भरोसेमंद जानकारी साझा करता हूँ। जैसे Bank Loan, Loan App, Student Loan, Consumer Loan और Loan Schemes.

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